जगत के आधार हैं परमात्मा : अरविंद महाराज

जयपुर. सांगानेर, प्रताप नगर सेक्टर 18 स्थित श्री देहलावास बालाजी के मंदिर में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के दूसरे दिन गुरुवार को कथाव्यास अरविंद महाराज ने कहा कि समस्त जगत के आधार अधिष्ठान परमात्मा हैं। इस मौके पर उन्होंने परमात्मा द्वारा सृष्टि की उत्पत्ति को विस्तार से समझाया। साथ ही कपिल भगवान द्वारा अपनी माता देवहूति को अष्टांग योग एवं सांख्य योग का उपदेश देने का प्रसंग हुआ।
उन्होंने बताया कि किस प्रकार परमात्मा की त्रिगुणात्मक शक्ति में विक्षोभ होकर क्रमश: आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी प्रकट होते हैं। इसके बाद इन्हीं से सूक्ष्म सृष्टि बनती है। इन पंचभूतों से पांच ज्ञानेंद्रियां, पांच कर्मेंद्रियां, पंचप्राण, मन, बुद्धि, चित, अहंकार की उत्पत्ति होती है। इसके बाद पंचभूतों के मिलने से स्थूल सृष्टि बनती है। इस स्थूल सृष्टि में सर्वप्रथम निर्गुण निराकार ब्रह्म सगुण साकार रूप में श्री हरिनारायण के रूप में व्यक्त होतें हैं, जिनके नाभिकमल से ब्रह्मा की उत्पत्ति होती है। ब्रह्मा के द्वारा सबसे पहले स्त्री, पुरुष के रूप में स्वायंभू, मनु एवं शतरूपा की उत्पत्ति होती है। समस्त मानव इन मनु की संतान होने के कारण ही मनुष्य कहलाते हैं। इसके बाद जल, नभ, धरा पर रहने वाले अनेकानेक पशु, पक्षी, कीट, पतंग, मछली, सर्प आदि की सृष्टि बनी। 6 प्रकार के पेड़-पौधों की सृष्टि बनी। देवी, देवताओं, गंधर्व, यक्ष, पितृ आदि की दैवीय सृष्टि बनी। इस प्रकार परमात्मा ने अपने आप में ही ऐसी कारीगरी की कि कोई उसकी कारीगरी में कमी नहीं निकाल सकता। क्योंकि पूर्ण परमात्मा से जो भी उत्पन्न होगा, वह पूर्णता लिए हुए ही होगा। आज की कथा में परीक्षित जन्म से लेकर उनके वैराग्य तक की कथा का विशद विवेचन भी किया गया। परमात्मा का ध्यान किस प्रकार से किया जाता है, जब ध्यान प्रक्रिया समझाई जा रही थी तो ऐसा प्रतीत हुआ कि सभी समाधिस्थ हो गए। कपिल भगवान द्वारा अपनी माता देवहूति को अष्टांग योग यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि एवं सांख्य योग का उपदेश दिया। इस उपदेश के द्वारा देवहूति परमात्मा के साथ एक रूप हो गई। आज की कथा की विशेषता रही कि सभी भक्त ऐसे ध्यानावस्थित हुए कि ऐसा प्रतीत हुआ मानो सबको बस परमात्मा ही मिल गया हो।

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