बुधादित्य योग में करवा चौथ आज, चंद्रोदय रात 8:22 बजे


46 साल बाद गुरू रहेंगे अपनी ही राशि में

जयपुर। सुहाग पर्व करवा चौथ 13 अक्टूबर को मनाया जाएगा। महिलाएं पति की दीर्घायु और सुख-सौभाग्य की कामना के लिए व्रत रखेंगी। शादी के बाद पहला करवा चौथ व्रत रखने वाली नवविवाहिताओं में पर्व को लेकर खासा उत्साह रहेगा। पूर्व संध्या पर बुधवार को महिलाओं ने हाथों पर मेहंदी

लगवाई और रूप निखारा। बाजारों में करवा सहित पूजन सामग्री खरीदी गई। व्रत रखने वाली महिलाएं दिन में प्रथम पूज्य गणेशजी और चौथ माता की पूजा-अर्चना कर रात को चंद्रमा को अघ्र्य देकर व्रत पूर्ण करेंगी। गुरुवार को चंद्रोदय रात्रि करीब साढ़े आठ बजे होगा। महिलाएं चतुर्थी का सामूहिक उद्यापन भी करेंगी। महिलाओं को भोजन कराकर उपहार दिए जाएंगे।

ज्योतिषाचार्य डॉ. महेन्द्र मिश्रा ने बताया कि 13 अक्टूबर को करवा चौथ पर गुरुवार रहेगा। गुरु अपनी ही राशि में होंगे। ऐसा संयोग 46 साल बाद बन रहा है। इससे पहले ऐसा 23 अक्टूबर 1975 को हुआ था। इस बार करवा चौथ पर गुरु का प्रभाव ज्यादा रहेगा। ये शुभ योग सौभाग्य और समृद्धि बढ़ाने वाला होगा। इस संयोग में किया गया व्रत और पूजा अखंड सौभाग्य और सुख-समृद्धिदायक होगी। इस बार करवा चौथ पर चंद्रमा और बुध उच्च राशि में होंगे। गुरु-शनि अपनी ही राशियों में और मंगल खुद के नक्षत्र में होगा। इन पांच ग्रहों की शुभ स्थिति के साथ बुधादित्य और महालक्ष्मी योग भी रहेगा। सितारों की इस स्थिति से पूजा और व्रत का शुभ फल और बढ़ जाएगा।


ऐसे करें पूजा-अर्चना

ज्योतिषाचार्य पं. सुरेन्द्र गौड़ ने बताया कि सुबह स्नान करने के बाद देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना कर उनके समक्ष व्रत करने का संकल्प लें। सबसे पहले गणेशजी की पूजा करें। उसके बाद भगवान शिव, माता पार्वती और कार्तिकेय की भी पूजा करें। चंद्र दर्शन के बाद अघ्र्य अर्पित करें। भगवान को भोग लगाने के बाद भोजन ग्रहण करें।


पति की दीर्घायु के लिए किया जाता है ये व्रत

पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखने की परंपरा सतयुग से चली आ रही है। इसकी शुरुआत सावित्री के पतिव्रता धर्म से हुई। जब यम आए तो सावित्रि ने अपने पति को ले जाने से रोक दिया और अपनी दृढ़ प्रतिज्ञा से पति को फिर से पा लिया। तबसे पति की लंबी उम्र के लिए व्रत किया जाने लगा। दूसरी कथा पांडवों की पत्नी द्रौपदी की है। वनवास काल में अर्जुन तपस्या करने नीलगिरि पर्वत पर चले गए थे। द्रौपदी ने अर्जुन की रक्षा के लिए भगवान कृष्ण से मदद मांगी। उन्होंने द्रौपदी को वैसा ही उपवास रखने को कहा जैसा माता पार्वती ने भगवान शिव के लिए रखा था। द्रौपदी ने ऐसा ही किया और कुछ ही समय के बाद अर्जुन सुरक्षित लौट आए।

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