सैंथल के साईं धाम से सिद्ध होते हैं सब काम

दौसा. जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर स्थित प्रमुख धार्मिक स्थल सैंथल साईं धाम में सजी बाबा की झांकी।
आगामी सोमवार को निकाली जाएगी बाबा की पालकी
दौसा . जिले के प्रमुख धार्मिक स्थल सैंथल साईं धाम पर विभिन्न प्रांतों से श्रद्धालुओं का पहुंचना शुरू हो गया है। यहां 24 दिसंबर को द्वारका माई से नए मंदिर तक बाबा की पालकी निकाली जाएगी। सोमवार को पालकी के बाद मंदिर में आरती होगी। तत्पश्चात रातभर सत्संग चलेगा। इस दौरान तांत्या के साथ साईं बाबा भी दर्शन देंगे। दौसा-अलवर वाया टहला मार्ग स्थित इस धाम की ख्याति दूर-दूर तक फैल चुकी है। केंद्र व राज्य सरकार के मंत्री, सांसद, विधायक, उच्चाधिकारी व फिल्म कलाकारों का यहां आना-जाना लगा रहता है। ऐसी मान्यता है कि धाम पर तांत्या के साथ बाबा के दर्शन से लोगों की मनोकामना पूरी होती है। अब तो पं. मनीष शर्मा, रवि पांचाल के साईं भजनों की सीडी भी बाजार में आ चुकी हैं।   
किस तरह पहुंचें
दौसा से सैंथल साईं धाम 25 किमी दूर है। रोडवेज बस, टैक्सी व जीप आदि से इस धाम तक पहुंचा जा सकता है। दौसा में यहां के लिए वाहनों की सुविधा दिनभर उपलब्ध रहती है। मनोहरपुर-कौथून राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-11ए पर बासड़ी चौराहे से सैंथल की दूरी 10 किमी है। इस मार्ग से सैंथल कस्बा दिल्ली-जयपुर हाईवे से भी जुड़ा है। जयपुर-आगरा हाईवे-11 पर दौसा से अलवर के लिए चलने वाली बसें भी सैंथल होकर आती हैं।  
तांत्या के आने के बाद बढ़ी महिमा
सैंथल धाम पर साईं भक्त तांत्या का आगमन करीब एक दशक पूर्व हुआ था। भक्तों का कहना है कि तांत्या के बिना साईं व साईं के बिना तांत्या अधूरे हैं। तांत्या के आने के बाद ही सैंथल धाम की महिमा बढ़ी है। तांत्या बाबा ने बताया कि साईं की प्रेरणा से वे जयपुर से सैंथल आए। वे भक्तों को साईं उपदेश निष्काम कर्म की सीख देते हैं। भक्तों का कहना है कि साईं धाम पर आने से मानसिक शांति की अनुभूति होती है। यहां सभी धर्मों व संप्रदायों के लोग आते हैं। 
शुभ है 24 तारीख
गुरुवार व हर माह की 24 तारीख को साईं धाम पर भक्तों की भीड़  उमड़ती है। सैंथल साईं धाम पर पुराना मंदिर का नाम द्वारका माई है। वहीं भव्य नया मंदिर भी बनाया गया है। नए मंदिर की नींव 24 जनवरी 2010 को रखी गई थी, जिसमें 12 अप्रैल 2012 को साईं बाबा की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की गई थी। सैंथल को साईं स्थल भी कहते हैं। शिरडी व सैंथल में कोई फर्क नहीं है। करीब तीन दशक से द्वारका माई में गुरुजी महाराज गद्दी पर बैठे हैं और तभी से जन सेवा व लोगों के कष्ट दूर करने में लगे हैं। गुरुजी महाराज का कहना है कि सच्चे मन से मांगने पर भक्तों की मुराद जरूर पूरी होती है।

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